Monday, September 19, 2011

मुझे डर है उसे खोने का, क्योंकि मैं उसे प्यार करता हूँ...........

मुझे डर है उसे खोने का,

क्योंकि मैं उसे प्यार करता हूँ ,

अक्सर पूछता हूँ अपने आप से,

क्या वो भी डरती है मुझे खोने से,

ये सच है कि आज मैं अनिश्चितता से लड़ रहा हूँ,

उसे क्यों यकीन नहीं होता कि मैं डिगने वाला नहीं हूँ,

सिर्फ इसलिए कि उसे आज कहीं और निश्चितता नजर आती है,

वो क्यों नहीं समझती कि मुहब्बत उसका इम्तिहान ले रही है,

ये सच है कि वो जानती है कि कि मुझे शिकायत करने कि आदत नहीं है,

लेकिन क्यों भूल जाती है कि मुझे मुहब्बत के बिना जीने की भी आदत नहीं है,

वो खुशनसीब है क्योंकि उसे मुझे समझाने की कला आती है,

ये मेरी बदनसीबी है की मुझे उसकी अनिश्चितता बढनें का डर है,

मैं जानता हूँ कि मुझे दिल से निकालना उसके लिए मुमकिन नहीं है,

इसलिए मुझे डर है उसे खोने का ?



राहुल सिंह शेखावत

























Wednesday, September 7, 2011

उत्तराखंड को भी है एक अन्ना की जरूरत है



सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 64 साल की आजादी के बाद जिन मुद्दों को उठाया है, कमोबेश वह सभी करीब 11 साल की उम्र वाले उत्तराखण्ड में मौजूद हैं। देश भर में चली भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के मद्देनजर उत्तर प्रदेश से अलग अपने उत्तराखण्ड के बड़े-बड़े सपने देखने वाले लोगों के दिल का दर्द भी जुबां पर आता दिखाई दिया। हालांकि, आमजन को नवसृजित और छोटा राज्य होने के कुछ स्वाभाविक फायदे जरूर मिल रहे हैं। लेकिन, पिछले एक दशक के दौरान इस राज्य में राजनैतिक अपरिपक्वता, अदूरदर्शी नेतृत्व के चलते हुए अनियोजित विकास से लोग अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं।
उससे चिंताजनक बात ये है कि भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुंचा है। यही वजह है कि उत्तराखण्ड में बड़े तबके को एक अन्ना सरीखे व्यक्तित्व की जरूरत महसूस हो रही है। भले ही पिछले दस सालों के दौरान भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार जन आकांक्षाओं पर पूरी तरह से खरी न उतर पाई हों लेकिन, जनता की कमाई को लूटकर उनके सपनों का खून करने में कोई पीछे नहीं रहा। देहरादून में अधिकारियों और बाबूओं का कमीशन लखनऊ के मुकाबलें कई गुना बढ़ गया है। उससे बड़ी बिडम्बना ये है कि उसके बाद भी काम हो जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है। नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में राज्य की पहली निर्वाचित सरकार बनी। उनके कार्यकाल के दौरान उत्तराखण्ड के मूलभूत विकास का ढ़ांचा बना। लेकिन, पटवारी और दरोगा भरती जैसे घोटाले से तिवारी सरकार के कार्यकाल पर भ्रष्टाचार के छींटे पड़े। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने तिवारी सरकार के कार्यकाल में 56 घोटाले होने के आरोप लगाए। अब ये बात और कि वह तीन रिटायर्ड जजों से जांच कराने के बाबजूद भी उन्हें उजागर करने में नाकाम रही है।
वैसे खुद भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। एन डी तिवारी के बाद फौजी जनरल रहे बी सी खण्डूरी ने राज्य की दूसरी निर्वाचित सरकार की बागडोर संभाली। भले ही उन पर सीधी उंगलियां न उठी हों लेकिन उनके खासमखास आईएएस अधिकारी प्रभात सांरगी के जलबे सभी जानते हैं। ऐसे कई मौके आए हैं जबकि उनके उत्तराधिकारी और वर्तमान मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए। जल विदयुत परियोजनाओं का आबंटन, ऋषिकेश का चर्चित स्टर्डिया प्रकरण इसकी तस्दीक करने को काफी हैं। वैसे इन दोनों मामले के भ्रष्टाचार के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर हुई। हाइकोर्ट के डंडे के डर से राज्य सरकार कई अपने फैसलों को वापस लेने पर मजबूर हुई जिससे निशंक सरकार ने जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता कम की है।
उत्तराखण्ड की परिकल्पना समग्र विकास, छोटी छोटी प्रशासनिक इकाइयों और सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए की गई थी। लेकिन राज्य गठन को एक दशक बीत जाने के बाद इस दिशा में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई है। अपरिपक्व सियासतदाओं के बीच नौकरशाही का हावी और बेलगाम होना स्वाभाविक ही है। खुद राज्य के हाईकोर्ट ने अफसरों की कार्यशैली पर गंभीर टिप्पणीयां की हैं जिसका एक उदाहरण आईएएस अधिकारी डा उमाकांत पंवार हैं, जिनके आचरण को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने उन्हें 6 महीने का प्रशिक्षण देने को कहा था। यह इकलौता मामला नहीं है। इसके अलावा कई अफसरों पर तल्ख टिप्पणीयां हुईं। वैसे हाईकोर्ट से अधिकारियों को अवमानना नोटिस मिलना तो अब आम बात हो गई है। भले ही लोगों की आकांक्षाएं पूरी न हो पा रही हो, लेकिन करीब ग्यारह साल की उम्र पूरे कर रहे उत्तराखण्ड राज्य में एक के बाद एक पांच मुख्यमंत्री जरूर बन गए हैं।
इससे आप खुद ही अंदाज लगा सकते हैं कि अपने सपनों के राज्य में जनता की कितनी सुनी जा रही होगी। और हां, राज्य गठन के बाद, भले ही भले ही कोई एक मंत्री अपने काम के लिए सुर्खियों में ना रहा हो। लेकिन कुछेक माननीय जैनी, नीलम, गीता खोलिया और रूचि क्षेत्री प्रकरण में जरूर चरचा में रहे हैं। ऐसा लगता है कि मानो इस राज्य के हुक्मरान ये भूल गए हैं कि उत्तराखण्ड की बुनियाद में 42 लोगों की शहादतें और कई महिलाओं की इज्जत दफन है। लब्बोलुबाब इतना भर है कि उत्तराखण्ड में भी देश में फैले भ्रष्टाचार और अव्यवस्था से जुदा हालात नहीं है जिसके खिलाफ लोगों को खड़ा करने के लिए आजादी के छह दशक बाद अन्ना हजारे ने बीड़ा उठाया है। इसे देखकर उत्तराखण्ड भी शक्ल और सूरत संवारने के लिए एक अन्ना की बाट जोह रहा है।



राहुल सिंह शेखावत