Sunday, May 19, 2013

फकत कुछ हासिल ही करने से दूर रही खवाहिशे मेरी



फकत कुछ हासिल ही करने से दूर रही खवाहिशे मेरी
वो भी कभी नहीं चाहा अमूमन जिसकी चाह लोग रखते हैं
रिश्तों को स्वार्थ के चस्मे से भी कभी नहीं देखा मैंने
न जाने फिर भी क्यों लोगों को गलतफहमी हो जाती है
हमेशा ही खुद को भूलाकर ही रिश्तांे को सहेजता रहा
स्वार्थ इतना था कि उनकी अपनेपन की कमी दूर हो जाए
लेकिन न जाने क्यूं उन्हें करीबीयां ही खटकने लगी हैं
न जाने क्यों हकीकत से कहीं दूर रही हैं ख्वाहिशें मेरी
फिर भी ख्वाहिश है कि ये ख्वाब हकीकत हो जाए
उन्हें इल्म होगा कि मेरा जुर्म कुछ और नहीं महज अपनापन है