Tuesday, November 8, 2011

कहीं ऐसा तो नहीं लगता अपना उत्तराखंड






माफ करना नित्यानंद स्वामीजी, भगतदा आप भी माफ करना,

गुस्ताखी माफ तिवाड़ी ज्यू, जनरल साहेब आप भी माफ करना,

उत्तराखंड को देखते ही देखते ग्यारह साल हो गए हैं,

राज्य में एक के बाद एक पांच मुख्यमंत्री भी बदल गए,

लेकिन क्या इससे पहाड़ कि तकदीर बदल पाई?

ये सवाल मैदानी शहरों में रहने वाली भीड़ का नहीं है,

बल्कि ये दर्द दूर शांत पहाड़ों में रहने वाले लोगो का है,

माना कि पहाड़ कि समस्याएँ भी पहाड़ सरीखी विशाल है,

लेकिन कुछ कर गुजरने के लिए ग्यारह साल भी कम नहीं हैं,

अब तो पहाड़ का रोने वाला जनकवि गिर्दा भी नहीं रहा,

उसके बाद कोई और है जो पहाड़ कि पुरजोर आवाज उठाएगा?

निशंक जी सुना है आप विधाता बनने कि कोशिशों में जुटे थे,

उत्तराखंड छोड़िए, खुद आपकी पार्टी का ये गवांरा नहीं हुआ,

खंडूरी जी, फिर आपका मुंह भी ताकना तो उत्तराखंडियो कि मज़बूरी है,

वैसे शहीदों कि सपने साकार होने में अभी बहुत ज्यादा देर नहीं हुई है,

पिछले ग्यारह सालों कि गलतिओं से सबक लिया जा सकता है,

लेकिन क्या हुक्मरान अपने स्वार्थो को छोड़कर ऐसा कर पाएंगे?

या आपदा के मलबे में ही अपने निकम्मेपन को मिलाने में जुट पाएंगे,

उत्तराखंडी जनमानस एक बार फिर पुकार रहा है,

सुधरने और सबक लेने का यह सही वक्त है,

वरना वो दिन दूर नहीं जब पहाड़ के कोने कोने में आवाज गूंजेगी,

नहीं चाहिए वोट के सौदागरों की भीड़ भरा उत्तराखंड,

हमें चाहिए सिर्फ शहीदों के सपनो का अपना उत्तराखंड..............



राहुल सिंह शेखावत