Tuesday, June 21, 2011

कांग्रेस के अन्दर राहुल गान्धी की कांग्रेस



कांग्रेस के युवराज राहुल गान्धी 41 साल के हो गए हैं। 2004 में संसदीय राजनीति शुरू करने वाले राहुल 2007 में पार्टी के महासचिव पद पर काबिज हो गए थे। वैसे तो उनके लिए गान्धी होना ही काफी है लेकिन, 2009 के लोकसभा चुनाव राहुल गान्धी के लिए अहम साबित हुए। तमाम राजैनीतिक जानकारों ने उस चुनाव के परिणाम को अलग अलग रूप में परिभाषित किया। लेकिन, इस बात से किसी को नाइत्तेफाकी नहीं थी कि उस जनादेश ने राहुल गान्धी को देश का यूथ आईकन बना दिया था। नौजवान गान्धी ने कांग्रेस के लीडरशिप वाले यू पी ए गठबन्धन को लोकसभा में पूर्ण बहुमत के करीब पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। उससे भी बड़ी बात ये रही कि कमोबेश दो दशकों के बाद कांग्रेस का लोकसभा में सदस्यों का आंकड़ा 206 तक पहुंचा।

उस वक्त कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृश्य में जबरदस्त वापसी से वह लोग अचिम्भत थे, जिन्हें राहुल गान्धी का उत्तर प्रदेश के गांवों में दलितों के घर में ठहरने में नौटंकी नज़र आती थी। आश्चर्य उनको भी था जिन्होंने राजस्थान के एक गांव में लोगों के साथ कन्धे पर मिट्टी का तसला ले जाते हुए राहुल को हल्के में लिया। अचम्भे में वह भी थे जिन्हें कलावती के दर्द की कहानी संसद में सुनाते हुए राहुल गान्धी में संवेदनशीलता की झलक नज़र नहीं आई। वैसे मखौल का विषय ब्रिटेन के एक मन्त्री को गांव में ले जाकर ठहराना भी बना था। दरअसल, अघिकांश राजनेता भी राहुल गान्धी की गम्भीरता पर ज्यादा गम्भीर नहीं थे।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री मायावती ही ऐसी अकेली सियासी हस्ती थी, जिसने कांग्रेस के इस नेता को गम्भीरता से लिया। मायावती ने काफी पहले ही राहुल गान्धी को टारगेट करना शुरू कर दिया था। दरअसल, वह सारी कवायद राहुल गान्धी की कांग्रेस के संगठन को मजबूत बनाने की शुरूआती मुहिम का हिस्सा था। 2004 में अमेठी से सांसद बन जाने के बाद उनको इस बात का बखूबी इल्म था कि पार्टी संगठन की मजबूती के बिना वह ताकतवर नहीं बन सकते। इसलिए राहुल ने अपना ध्यान संगठन पर केिन्द्रत कर दिया। इसी कड़ी में कांग्रेस महासचिव ने ड्राइंग रूम पालीटिक्स करने वाले घाघ नेताओं की जगह नौजवान कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़कर संगठन खड़ा करने का जिम्मा उठाया। राहुल गान्धी के टारगेट में समाज का हरेक तबका था, कोई विशेष धर्म अथवा जाति नहीं। यूथ मास की ताकत को पहचानने में युवा गान्धी ने गलती नहीं की। अपने स्वर्गीय पिता राजीव गान्धी का अनुभव और स्टाईल उस सोच का मजबूत आधार था।

दरअसल, उस सारी कवायद के पीछे राहुलस डिस्कवरी आफ आरगेनाईजेशन एण्ड डेमोक्रेसी इनसाईड द कांग्रेस नामक थ्योरी छिपी थी। जिसे परवान चढ़ाने के लिए राहुल गान्धी ने लोकसभा चुनावों से पहले भारत भ्रमण भी किया। वह एक कोशिश थी संगठन की जमीनी हकीकत की टोह लेने और यह जानने की कि आखिर क्यों जनता कांग्रेस का हाथ पूर्ण रूप से पकड़ने में हिचकती है। युवाओं को राजनीति में लाने के लिए इन्टरव्यू कराए जा रहे हैं। अब कम से कम युवा कांग्रेस और एन एस यू आई में चुनाव के जरिए पदाधिकारी बनाने की शुरूआत हुई है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में अब कुछ पाक साफ हो गया है। लेकिन, पार्टी संगठन को मजबूत बनाने की एक नई शुरूआत जरूर हुई है। राहुल गान्धी की टीम से कांग्रेस में सेकेण्ड कम्पार्टमेन्ट तैयार हुआ है। उत्तर प्रदेश में कमोबेश दो दशकों के बाद कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी होती नज़र आ रही है। हालांकि बिहार में लोकसभा चुनावों के बाद एक बार फिर हालिया विधानसभा चुनावो में भी पार्टी की दुर्गती हुई, लेकिन कार्यकर्ताओं के मन में भविष्य के प्रति भरोसा तो जगा है।

लब्बोलुबाब इतना भर है कि सोनिया गान्धी की कांग्रेस के भीतर ही राहुल गान्धी की एक नई कांग्रेस की शक्ल नज़र आने लगी है। जिसका आधार पाजीटिव पालीटिक्स और सैक्युलर एवं नान सेक्युलर के साथ विकास केिन्द्रत राजनीति है। इस मुहिम में युवाओं की भागीदारी और जिम्मेदारी बढ़ाने का प्रयास है। इस अघोषित कांग्रेस में इिन्दरा गान्धी की मजबूती का अक्स नज़र आता है,तानाशाही का नहीं। उसमें राजीव गान्धी की सबको साथ लेकर चलने की नीति का प्रतिबिम्ब तो है,सञ्जय गान्धी की विवादास्पद और एकाधिकार वाली छवि से दूरी दिखती है।

एक सवाल राहुल गान्धी की नई कांग्रेस पर भी उठता है। वो यह कि क्यों नेहरू गान्धी खानदान का नेता ही कांग्रेस पार्टी पर राज करता हैर्षोर्षो पार्टी में एन्ट्री करने के बाद क्यों सीधे प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर उसका एकाधिकार बन जाता हैर्षोर्षो क्यों गान्धी परिवार का सदस्य उससे पहले किसी दूसरे विभाग में मन्त्री बनने की रेस में शामिल नहीं होतार्षोर्षो मुझे लगता है यह प्रश्न जब तक जिन्दा रहेगा, जब तक गान्धी परिवार का मुल्क की सियासत में दखल रहेगा। फिलहाल राहुल गान्धी इस यक्ष प्रश्न का उत्तर चुप रहकर अपने ही अन्दाज में देने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं। प्रधानमन्त्री और पार्टी सदस्यों की मन्त्रिमण्डल में शामिल होने के बजाय वह अभी संगठन में काम करने की इच्छा जता रहे हैं। क्या राहुल गान्धी ग्रामीण विकास मन्त्रालय, कृषि मन्त्रालय, मानव संसाधन विकास मन्त्रालय अथवा किसी अन्य विभाग में काम करने का साहस दिखा सकते हैंर्षोर्षो अगर, वह ऐसा करते हैं तो विदेशी मूल के मुद्दे के बाद यह सवाल भी नेपथ्य में जा सकता है। बहरहाल, बेतहाशा उम्मीदों के भार तले राहुल गान्धी के लिए आगे का सफर और ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा।



राहुल सिंह शेखावत