Sunday, May 15, 2011

..तो अब अयोध्या विवाद के हल की उम्मीद करनी चाहिए






अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मिस्जद विवाद के सन्दर्भ में 30 सितम्बर 2010 का दिन एक नए अध्याय की शुरूआत था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ बैंच के जस्टिस धरमवीर शर्मा, एस यू खान और सुधीर अग्रवाल ने इस प्रकरण में अपना फैसला सुनाया। तीन जजों की खण्डपीठ के फैसले में कहा गया कि अयोध्या में मौजूदा स्थान पर रामलला विराजमान रहेंगे। निर्मोही अखाड़े को राम चबूतरा और सीता रसोई मिलेगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड को विवादित भूमि की एक तिहाई जमीन मिलेगी। लेकिन, अब देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने लखनउ बैंच के उस फैसले पर रोक लगा दी है।

दरअसल, हाईकोर्ट के उस निर्णय में आस्था की छाया पड़ी थी। उसी वक्त न्यायिक प्रक्रिया में आस्था के समावेश को लेकर कई पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने लखनउ बैंच के फैसले पर सवाल खड़े किए थे। जिसके पीछे तर्क ये था कि अदालत सबूतों के आधार पर निर्णय देती है, आस्था के आधार पर नहीं। हाईकोर्ट के उस निर्णय में सभी पक्षकारों के लिए कुछ न कुछ था। यही वजह थी कुछ बुद्विजीवियों ने उसे एक पंचायती फैसला कहने में भी संकोच नहीं किया था। किसी भी पक्ष के लिए जमीन का बण्टवारा स्वीकार करना व्यवहारिक तौर पर मुश्किल काम था। ऐसे में पक्षकारों का उच्चतम न्यायालय में उस फैसले को चुनौती देना स्वाभाविक था।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले में आस्था के समावेश और भूमि का बण्टवारा करने की बात पर हैरानी जताई। चूंकि अयोध्या में विवाद भूमि के स्वामित्व का था, जिसको लेकर हाईकोर्ट के निर्णय में कोई स्पष्टता नहीं थी। जिसके चलते अयोध्या विवाद के पक्षकारों ने उस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति आफताब आलम एवं न्यायमूर्ति आर एस लोढ़ा की पीठ ने लखनउ बैंच के निर्णय पर रोक लगा दी है।

बेशक लखनउ बैंच के उस निर्णय में आस्था और पंचायती फरमान का अक्स नज़र आया था। लेकिन मुझे लगता है कि उसने एक पेचीदा मसले का हल निकलने का एक बेशकीमती पायदान जरूर मुहैया कराया। दरअसल, धर्म और आस्था से जुड़े अयोध्या मामले में वोटों की सियासत इस कदर घुसपैठ हो गई कि हर कोई इस संवेदनशील विवाद का समाधान निकलने को लेकर आशंकित हो चला था। हिन्दु और मुसलमान दोनों ही तबके कई तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रसित थे, जिसके लिए कमोबेश दोनों तरफ के लोग जिम्मेदार हैं। हिन्दू धर्म के ठेकेदार तो यहां तक कह चुके थे कि अगर फैसला उनकी आस्था के खिलाफ जाता है तो वह उसे मानने को बाध्य नहीं हैं।

इन बातों के बीच पिछले साल लखनउ बैंच का फैसला आने से पहले पूरे देशवासियों की सांसे थम सी गईं थी। लोगों के जहन में एक सवाल गूञ्ज रहा था कि अखिर फैसले पर देश में क्या प्रतिक्रिया होगी। ऐसा होना लाजमी था क्योंकि देशवासी 90 के दशक की कड़वी यादों का अभी भूला नहीं पाए थे। केन्द्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार ने अतीत के कटु अनुभवों के मद्देनज़र अयोध्या और अन्य संवेदनशील स्थानों को छावनी में तब्दील करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लेकिन तीन जजों के निर्णय सुना देने के बाद लगा गोया अब हिन्दुस्तान 1992 के दौर से काफी आगे निकल चुका है।

न सिर्फ मुल्क में अमन चैन बरकरार रहा बल्कि अंग्रेजों की पूर्वाग्रही धारणा भी गलत साबित हो गई। गौरतलब है कि निर्मोही अखाड़ें ने अदालत से 1885.86 में मिस्जद की बगल में राम चबूतरे पर मन्दिर बनाने की इजाजत मांगी थी। लेकिन, अदालत ने अखाड़े के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ऐसा होने पर वहां हर रोज विवाद होता रहेगा। लखनउ बैंच के फैसले में विवादित जमीन के बण्टवारे की बात से पक्षकारों को नाइत्तेफाकी थी। जिसके चलते उन्होंने उस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन दोनों ही तबकों ने जो सञ्जीगदी दिखाई उसने अंग्रेजों की धारणा को गलत साबित कर दिया।

उससे बाद राम जन्मभूमि और बाबरी मिस्जद विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कोशिशें भी हुई। जिसकी कमान इस मसले के सबसे पुराने वादी हाशिम अंसारी ने सम्भाली। अंसारी ने खुद अपने वर्ग के कुछ लोगों के विरोध के बावजूद अखाड़े के साथ बातचीत की। भले ही उनके भागीरथ प्रयास का कोई परिणाम न निकला हो, लेकिन बातचीत करने का मनमानस बनने के रूप में एक सकारात्मक पहलू जरूर सामने आया। एक बात साफ है कि दोनों ही पक्ष उस अयोध्या विवाद का शान्तिपूर्ण समाधान चाहते हैं, जिसने दो बड़े तबको के बीच लकीर खींचकर, देश के सामाजिक ताने बाने को बड़ा नुकसान पहुंचाया।

कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य राजनैतिक पार्टियों ने इस मुददे को हमेशा ही अपनी अपनी सियासत का औजार बनाया। जिसका खामियाजा सिर्फ दो तबको ने नहीं बल्कि पूरे देश ने भुगतना पड़ा। अब देश की सबसे बड़ी अदालत में इस संवेदनशील मसले पर सुनावाई शुरू हो गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि अन्तिम फैसला पुरानी कशीदगी को खत्म करके एक नए हिन्दुस्तान के उदय में सहायक बनेगा।



राहुल सिंह शेखावत