Saturday, June 8, 2019

प्रकाशदा आपको स्वर्गीय मानने के लिए मन को बहलाने में समय लगेगा




ये फोटो पिछले साल की है, जब पूर्ववर्ती चैनल के लिए उनका इंटरव्यू करने के बाद फ्री हुआ था। दरअसल, कंठस्थ आंकड़ों के साथ जवाब देने के लिए मशहूर वित्तमंत्री Prakash Pant  किसी एक मामले पर अपडेट नहीं थे। जैसे ही इंटरव्यू खत्म हुआ मैंने सम्बंधित सवाल का जिक्र किया। पहले प्रकाश दा ने कहा नहीं-नहीं, फिर सहमत होते हुए बोले नए आंकड़े आ गए पता नहीं यार कैसे मैं ध्यान नहीं दे पाया।

फिर मैं उनसे आदतन मजाकिया लहजे में बोला कि दाज्यू  दुनिया चांद पर पहले पहुँच गई और मंगल ग्रह पर कब्जा करने की तैयारी में है और आप पुराने आंकड़ों में अटके हो। उसके बाद प्रकाश पंत अपनी निश्छलता के साथ जोर से हंसे औऱ मैं अपने चिर परिचित ठहाकों के साथ। उसी हंसी-ठिठौली के बीच क्लिक हुए इन चित्रों को मैंने अपलोड नहीं किया था। लेकिन मुझे इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि वो इतनी जल्दी और इस तरह रुख्सत हो जाएंगे।

अब मन कचौट रहा रहा है कि काश उसी दिन ये फोटो चस्पा कर दिए होते क्या पता आज के हालात न होते-खैर। ये कहना महज एक औपचारिकता भर है कि वित्त मंत्री रहे  Prakash Pant की असमय मौत उत्तराखंड की राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान है। दरअसल, उनके देहांत से उत्तराखंड में जीवंत प्रेरणा का एक अध्याय खत्म हो गया।

फार्मेसिस्ट रहे पंत MLC निर्वाचित होने के बमुश्किल दो साल बाद ही अंतरिम विधानसभा में स्पीकर बन गए थे। उसके बाद वो न सिर्फ एक सफल मंत्री बल्कि तीन मुख्यमंत्रीयों के सदन में "परफेक्ट फ्लोर मैनेजर" साबित हुए। मुझे लगता है कि पंत ने स्पीकर के तौर पर मिली एक बड़ी चुनौती को अपनी कुशलता और कर्मठता से खुद को राजनेता के तौर पर तराशने के एक अवसर में तब्दील कर दिया।

जहां उत्तराखंड में एक्सपोजर के अभाव नेतानगरी प्रभावहीन रही, वहीं मृदु भाषी पंत अपनी सहजतापूर्ण और संजीदा कार्यशैली से उम्मीदों के प्रकाश बनते गए। यही वो वजह है कि पंत दो बार मुख्यमंत्री की रेस में सुमार रहे। आंकड़े वाले वाकये का जिक्र इसलिए किया क्योंकि प्रकाश पंत की कोई उल्लेखनीय एजुकेशन अथवा बड़ी राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी। लेकिन उन्होंने पढ़कर एवं रटकर खुद को संसदीय एवं विधायी विशेषज्ञ के रूप में उस सदन के लिए तैयार किया, जिसकी नुमाइंदगी स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी, डॉ इंदिरा हृदयेश और मुन्ना सिंह चौहान सरीखे दक्ष लोग करते रहे हो।

एक दिन अचानक प्रकाश पंत ने फोन करके पूछा कि घर आ सकते हो क्या?  मैं बोला थोड़ा काम निपटा लूं फिर आने की कोशिश करता हूं। ये उस वक्त का एक वाकया है जब प्रकाशदा चुनाव हार गए थे। बहरहाल, मैं गया और दुआ-सलाम करते ही उन्होंने  मेरे हाथ मे "एक थी कुसुम" नामक किताब थमा डाली। दरअसल, पंत जी ने ना जाने कैसे उस रोज मेरे ब्लॉग पर मेरी एक कहानी "वो विधवा थी, या सुहागिन" पढ़ी थी।

उन्होंने मुझसे पूछा कि आपका कथानक काल्पनिक रहता है या सत्य घटनाओं पर आधारित। मैंने कहा कि सिर्फ सामने या आस पास या सामने घटित  घटनाक्रमों पर ही यदा कदा अंतर्मन की वेदना को उकेर देता हूँ। फिर पंत जे बोले  इसे फुर्सत में पड़ना क्योंकि मेरी किताब भी ऐसी ही वेदनाओं पर आधारित है।  मैं बोला ठीक छू।

बहरहाल, मैंने प्रकाश पंत के इलाज के लिए अमेरिका जाने से कुछेक दिन पहले  Manoj Anuragi को फोन करके कुशलक्षेम जानते हुए पूछा कि भाई साहब कहां मिलेंगे। वो एक घण्टे तक सरकारी आवास पर हैं, लेकिन जाम के झाम से निकलकर जब तक पहुंचा वो घर निकल चुके थे। चूंकि मुझे उसी शाम को लखनऊ निकलना था। लिहाजा मैंने उनके सहयोगी Pawan Chaudhary को फोन किया।  वो बोले आप तो घर जा सकते हो लेकिन बुके मत ले जाना क्योंकि डॉक्टरों ने मना किया है।

उसके बाद विजयनगर कॉलोनी स्थित उनके निजी आवास पर गया और मुलाकात हुई। मैंने पूछा दा क्या हुआ तो बोले यार निमोनिया बिगड़ गया है। तभी भाभी आ गई और चिरपरिचित मुस्कराहट के साथ बोली आज आप जमाने बाद आए हो। पंत जी बातचीत में तो सामान्य ही थे लेकिन ना जाने क्यों कुछ खोये से लग रहे थे।  कर्मकांडी नहीं होने के बावजूद  अनायास मेरे मुंह से निकला कि दाज्यू जब तबीयत सही हो जाए तो एक बार रणथंभौर  में जाकर ढोक दे आना।

पंत जी ने पूछा वहाँ क्या है तो मैंने बताया कि किले के टॉप पर मन्नत वाला बिना सूंड वाले गणेश जी का इकलौता मंदिर है। मैंने उन्हें बताया की राजस्थान के सवाईमाधोपुर में  जिसके पास रणथंभौर स्थित है और मैं वहाँ पढ़ा हूं। पंत जी अपनी धर्म पत्नी से बोले इसको लिख लो तो जरा। फिर बोले आप भी साथ चलोगे मैं बोला पक्का। लेकिन प्रकाशदा तो अपना वादा तोड़कर अब कहीं और ही चल दिए।

पंत जी आप जहां भी रहोगे मुस्कराते हुए उम्मीदों का प्रकाश फैलाते रहोगे। और हां सब कुछ जानने के बावजूद भी आपको स्वर्गीय लिखने के लिए मन को बहलाने में समय लगेगा।