पांच राज्यों में जनता की राय का खुलासा आगामी 6 मार्च को सार्वजनिक होने जा रहा है। चूंकि उत्तराखण्ड के मतदान और मतगणना के बीच एक महीने से ज्यादा समय रहा है। लिहाजा गश्ती खबरें और गफतल का माहौल होना लाजमी है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के समर्थक दुबारा सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। लेकिन मजेदार बात ये है कि विपक्षी कांग्रेस के नेता खुलकर दावा नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें सरकार बनाने को बहुमत मिलेगा। राज्य में बने अजीबोगरीब माहौल ने मुझे अपनी सामान्य बुद्वि पर जोर डालते हुए एक आंकलन करने को मजबूर किया। बहरहाल, ईवीएम में कैद वोटों की गिनती में चंद रोज बचे हैं, फिर भी मैं 70 सदस्यीय उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनावी नतीजों के अपने आंकलन को आपसे बांट रहा हूं।
वैसे उत्तराखण्ड का अतीत इस बात का गवाह है कि अभी तक यहां कोई भी सत्ताधारी पार्टी चुनाव जीतकर दुबारा सरकार नहीं बना पाई। 9 नबम्बर 2000 को उत्तराखण्ड गठन के वक्त भाजपा के नेतृत्व अंतरिम सरकार बनी थी। जिसके बाद साल 2002 में हुए राज्य में पहले आम चुनावो में कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला था। उसके बाद जनता ने 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हराकर भाजपा को सरकार बनाने का मौका दिया। मेरे विचार में भाजपा 2012 में बी सी खण्डूरी के नेतृत्व में राज्य में अब तक चले आ रहे पालीटिकल ट्रेंड को बदलने का करिश्मा करने में सफल नहीं हो पा रही है। अलबत्ता, कांग्रेस की कमोबेश सामान्य बहुमत के साथ सत्ता में वापसी हो रही है।
कांग्रेस की संभावित जीत वाली सीटें
चमोली जिले में पार्टी तीनों सीटें जीत सकती है। अगर जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण बहुत ज्यादा भारी पड़े तो कर्णप्रयाग पर कांग्रेस के ही बागी सुरेन्द्र नेगी की संभावना बन सकती हैं।
पौड़ी जिले की कुल 6 सीटों में कांग्रेस की आधी सीटों पर जीत सुनिश्चित है। यमकेश्वर और कोटद्वार में उसके भाग्य का छींका टूट सकता है। यमकेश्वर में बागी रेणू जोशी ने जरूर सरोजनी कैंतूरा के रास्ते में मुश्किलें बढ़ाने का काम किया है।
टिहरी जिले की कुल 6 सीटों पर जीत नजर आ रही है। साथ ही उसके दो बागी जोत सिंह बिष्ट और मंत्री प्रसाद नैथानी जीत के प्रबल दावेदार हैं। टिहरी सीट पर दिनेश धनै भी उल्टा पुल्टा कर सकते हैं।
देहरादून की कुल 10 सीटों में से आधी पर कांग्रेस का जीतना लगभग तय है। जिले में रायपुर, मसूरी और ऋिषिकेश में कांटे का मुकाबला है। पार्टी इन सीटों में भी उम्मीदें नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि यहां कुछ भी सामने आ सकता है।
हरिद्वार जिले में कांग्रेस के पास खाने के लिए कुछ नहीं है। लिहाजा कुल 11 सीटों में से आठ पर वह मुकाबले मे हैं। कांग्रेस को कम से कम 4 सीटें मिलनी चाहिए बाकी गंगा मैया पर छोड़ देना चाहिए।
उत्तरकाशी और रूद्रप्रयाग जिलों में कांग्रेस की एक एक सीट जीत होनी चाहिए।
नैनीताल जिले में कांग्रेस पिछले बार के मुकाबले कहीं बेहतर हालत में है। जिले की कुल 6 सीटों में आधी सीटों पर जीत तय है। पहली बार बनी भीमताल सीट पर कांटें का मुकाबला है। बहुत ज्यादा बुरा हुआ तो लालकुंआ सीट कांग्रेस के बागी हरीश दुर्गापाल को मिल सकती है।
उधमसिंहनगर जिले की कुल 9 सीटों में भी कांग्रेस को कम से कम पांच सीटें मिलनी चाहिए। गदरपुर सीट पर बागी जरनैल सिंह कांटे के मुकाबले में हैं। काशीपुर सीट पर कांटे का मुकाबला है कि लेकिन पर्वतीय वोट पार्टी उम्मीदवार मनोज जोशी की संभावना बढ़ाते हैं। वहीं किच्छा और खटीमा में कुछ भी हो सकता है।
चम्पावत और बागेश्वर में कांग्रेस को एक एक सीट मिलने कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही है। पार्टी को बागेश्वर जिले की कपकोट सीट पर आश्चर्यजनक खुशी की उम्मीद जिंदा रखनी चाहिए।
अल्मोड़ा जिला कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन सकता है। पार्टी अल्मोड़ा और जागेश्वर सीटें तो बरकरार रखती नजर आ रही है। लेकिन इस बार सल्ट और रानीखेत में कांटे का मुकाबला है। रानीखेत में बसपा प्रत्याशी पूरन डंगवाल कांग्रेस की उम्मीदों पर ग्रहण लगा सकते हैं। अलबत्ता द्वारहाट सीट पर कांग्रेस को जीत की उम्मीद रखनी चाहिए।
1. गंगोत्री
2. बद्रीनाथ
3. थराली
4. कर्णप्रयाग
5. केदारनाथ
6. नरेन्द्रनगर
7. प्रताप नगर
8. रुद्रप्रयाग
9. चकराता
10. विकासनगर
11. धर्मपुर
12. राजपुर रोड
13. मंगलौर
12. रूड़की
13. पिरान कलियर
14. पौड़ी
15. श्रीनगर
16. कपकोट
17. चम्पावत
18. नैनीताल
19. हल्द्वानी
20. रामनगर
21. जसपुर
22. बाजपुर
23. खानपुर
24 धारचूला
25. अल्मोड़ा
26 जागेश्वर
27. पिथौरागढ़
28. गंगोलीहाट
29. द्वारहाट
30. कोटद्वार
भाजपा की संभावित जीत वाली सीटें
चूंकि मेरे आंकलन के मुताबिक कांग्रेस बहुमत की राह पर जा रही है, लिहाजा भाजपा के लिए बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। मेरे साथ आपको भी 6 मार्च का हार जीत के लिए नहीं, बल्कि इस बात के लिए इंतजार करना चाहिए कि कहीं कैबिनेट का हाल साल 2002 वाला तो नहीं होगा। कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत, त्रिवेन्द्र सिंह रावत की हार जीत सिर्फ मतदाताओं के ही नहीं, बल्कि प्रभु के हाथों दिखाई पड़ रही है। खुद मुख्यमंत्री बी सी खण्डूरी और उनके समर्थकों यह विश्वास नहीं है कि क्या कोटद्वार की जनता ने उन्हें जरूरी माना है। भाजपा ही नहीं बल्कि हरेक की निगाहें रूद्रप्रयाग सीट पर लगी हैं। जहां कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कण्डारी और नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत के बीच मुकाबला है। मेरा आंकलन ये है कि कण्डारी उस सूरत में हार सकते हैं, जबकि अर्जून गहरवार 4000 से ज्यादा वोट हासिल करें। वरना कण्डारी भाई जी को अपनी सीट बरकरार रखनी चाहिए। आपकों बता दूं कि मातबर कण्डारी और गहरवार पूर्व में एक दूसरे के बेहद करीबी रहे हैं। भाजपा को अल्मोड़ा जिले में कांटे के मुकाबले में कुछ फायदा हाथ लग सकता है।
1. पुरोला
2. रूद्रप्रयाग
3. घनसाली
4. डोईवाला
5. सहसपुर
6. ज्वालापुर
7. हरिद्वार
8. डीडीहाट
9. रानीखेत
10. सोमेश्वर
11. लोहाघाट
12. चौबट्टाखाल
13. कालाढ़ंगी
14. सितारगंज
15. बागेश्वर
16. भीमताल
17. यमकेश्वर
18. सल्ट
19. काशीपुर
20. रुद्रपुर
21. किच्छा
22. खटीमा
23. ऋषिकेष
24. हरिद्वार ग्रामीण
25. रायपुर
26. लक्सर
27. रानीपुर
28. लैंसडौन
29. गदरपुर
जिन सीटों पर कांटे का मुकाबला है
1. कोटद्वार
2. यमकेश्वर
3. रानीखेत
4. द्वारहाट
5. सल्ट
6. भीमताल
7. काशीपुर
8. किच्छा
9. खटीमा
10. मसूरी.
11. रायपुर.
बहुजन समाज पार्टी की जीत वाली संभावित सीटें
इस बार बहुजन समाज पार्टी के लिए अपनी मौजूदा 8 सीटों को बरकरार रख पाना संभव नही होगा। मोटे तौर पर पार्टी का मत प्रतिशत तो बढ़ेगा, लेकिन सीटों की संख्या घटेगी। बसपा को हरिद्वार और उधमसिंहनगर दोनों ही जिलों में नुकसान होने जा रहा है। हरिद्वार जिले में पार्टी के 4 मौजूदा विधायक लगातार दो बार चुनाव जीतने के बाद फिर चुनाव लड़े हैं। लिहाजा इस बार हैट्रिक बनाना इतना आसान नहीं होगा। बहरहाल कुल ग्यारह सीटों में से करीब 8 सीटों में बीएसपी प्रत्याशियों को कांग्रेस से मुकाबला करना है। बमुश्किल एक अन्य सीट पर भाजपा त्रिकोणीय मुकाबला बना सकती है। लेकिन हार जीत जातिगत एवं राजनैतिक कारणों से कांग्रेस और बसपा के बीच ही होनी है। वैसे मंगलौर में आर एल डी प्रत्याशी गौरव चौधरी कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन और खानपुर में निर्दलीय प्रत्याशी मुफती रियासत कांग्रेस के कुंवर प्रणव चैम्पियन के समीकरण बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। वहीं, उधमसिंहनगर में बसपा सितारगंज सीट गंवाने जा रही है। अलबत्ता इसे जिले में पार्टी की उम्मीदें रूद्रपुर मे प्रेमानंद महाजन और जसपुर में मोहम्मद उमर पर टिकी हैं। मुझे नहीं लगता कि इन दोनों ही सीटों पर कड़ी टक्कर दे रही बीएसपी जीत पाऐगी।
1. भगवानपुर
2. झबरेड़ा
यूकेडी की संभावित जीत वाली सीटें
उत्तराखण्ड क्रांति दल प्रोग्रसिव के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी को पिथौरागढ़ जिले की धारचूला सीट से चुनाव जीतना आसान नहीं है। उत्तरकाशी जिले की यमुनोत्री सीट पर पूर्व विधायक प्रीतम पंवार को इस बार चुनाव जीतना चाहिए। वहीं, द्वारहाट सीट पर मौजूदा विधायक पुष्पेश त्रिपाठी कांटें के मुकाबले में फंसे हैं। इसकी एक वजह परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पी सी तिवारी का चुनाव लड़ना है। पुष्पेश त्रिपाठी और पी सी ब्राहमण हैं, जबकि इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी मदन सिंह बिष्ट ठाकुर हैं। लिहाजा इस बार अपने पिता स्वर्गीय विपिन दा की विरासत के सहारे दो बार चुनाव जीत चुके पुष्पेष त्रिपाठी के लिए जीत की राह बहुत ज्यादा आसान नजर नहीं आ रही।
यूकेडी प्रोग्रेसिव के नेता और कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट देवप्रयाग में जीतने की हालत नहीं हैं। मुझे नहीं लगता की मौजूदा विधायक ओम गोपाल रावत नरेन्द्र नगर में कांग्रेस प्रत्याशी सुबोध उनियाल को इस बार हरा पाएंगे। बहरहाल जीत की सम्भावना सिर्फ यमुनोत्री में ही है। लेकिन यूकेडी की उपरोक्त तीन सीटों के अलावा कहीं मुकाबले में भी नहीं है।
1. डीडीहाट
2. यमुनोत्री
3. द्वारहाट
उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा की संभावित जीत वाली सीटें
चुनावों से पहले वजूद में आए रक्षा मोर्चा कांग्रेस और भाजपा के बागियों की पनाहगाह बना है। मुझे नहीं लगता कि जनता ने इस मोर्चे को बहुत ज्यादा गंभीरता से लिया। मोर्चे को टीपीएस रावत, केदार सिंह फोनिया, अनिल नौटियाल के अलावा किसी अन्य प्रत्याशी से बेमतलब उम्मीद नहीं होनी चाहिए। वैसे रूद्रप्रयाग सीट पर कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कण्डारी के करीबी रहे अर्जुन गहरवार और देहरादून कैंट सीट पर स्पीकर हरबंश कपूर के ओ एस डी रहे पंत चुनाव लड़ रहे हैं। अगर मोर्चे के इन दोनों उम्मीदवारों ने 5 हजार से ज्यादा वोट प्राप्त कर लिए तो कण्डारी और कपूर को दिक्कत पेश आना लाजमी है। बहरहाल, मोर्चे की सारी उम्मीदें टीपीएस रावत पर ही टिकी होनी चाहिए, लेकिन जीत रावत के लिए भी एकदम आसान नहीं है। अलबत्ता उपरोक्त तीन सीटों पर मोर्चा भाजपा उम्मीदवार रों को हराने में भूमिका जरूर निभाएगा।
1. लैंसडान मोर्चा के अध्यक्ष टी पी एस रावत
2. बदरीनाथ भाजपा के बागी केदार सिंह फोनिया
3. कर्णप्रयाग भाजपा के बागी अनिल नौटियाल
निर्दलीयों की संभावित जीत वाली सीटें
मुझे लगता है कि बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतने वालों की संख्या 3 से 5 के बीच रहनी चाहिए। इनमें भी ज्यादातर कांग्रेस के बागी ही नजर आ रहे हैं। उपरोक्त निर्दलीय उम्मीदवार में शुरू के 6 मुख्य मुकाबले में नजर आ रहे हैं। होने के चलते जीतने की स्थिति में आ सकते हैं।
1. घनोल्टी कांग्रेस के बागी जोत सिंह बिष्ट
2. देवप्रयाग कांग्रेस के बागी मंत्री प्रसाद नैथानी
3. लालकुंआ कांग्रेस के बागी हरीश दुर्गापाल
4. बीएचईएल कांग्रेस के बागी अंबरीश कुमार
5. गदरपुर कांग्रेस के बागी जरनैल काली
6. टिहरी से दिनेश धनै
इनके अलावा उक्त निर्दलीय प्रत्याशियों के जातिगत और क्षेत्रीय कारणों के चलते अपनी अपनी सीटों पर मुख्य मुकाबले में आने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
7. कर्णप्रयाग कांग्रेस के बागी सुरेन्द्र नेगी
8. टिहरी कांग्रेस के बागी दिनेश धनै
9. कालाढूंगी कांग्रेस के बागी महेश शर्मा
उत्तराखण्ड में संभावित चुनाव परिणाम
कांग्रेस 32 से 40 सीट
बीजेपी 25 से 30 सीट
बसपा 2 से 3सीट
यूकेडी 0 से 1 सीट
रक्षामोर्चा 0 सीट
निर्दलीय 3 से 5 सीट
निष्कर्ष
1. पिरान कलियर सीट पर बहुजन समाज पार्टी के शहजाद, चुनाव हारने की हालत में हैं। उनके अलावा यूकेडी पी के विधानमंडल दल नेता और विधायक पुष्पेश त्रिपाठी द्वारहाट के चुनावी चक्रव्यूह में बुरी तरह फंसे हैं। खुद मुख्यमंत्री बी सी खण्डूरी की कोटद्वार सीट पर हालत पतली है।
2. अगर बात कैबिनेट मंत्रियों की करे तो पिथौरागढ़ सीट पर प्रकाश पंत, कपकोट में बलबंत भौर्याल , रुद्रप्रयाग में मातबर सिंह कंडारी और देवप्रयाग सीट पर यूकेडी डी के दिवाकर भट्टजीतने की हालत में नहीं हैं। मुझे लगता है कि अगर किस्मत ही कोई चमत्कार कर दें तो अलग बात है, वरना इन सभी का विधानसभा पहुंचना बेहद मुश्किल हैं। साथ ही, कैबिनेट मंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी कांटे के मुकाबले में फंसे हैं।
3. चूंकि एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस औऱ भाजपा के मजबूत बागी मैदान में तो हंग असेम्बली से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
4. इस बार उत्राखण्ड में कमाबेश 70 फीसदी मतदान हुआ था। लिहाजा कांग्रेस भाजपा और बसपा के मत प्रतिशत में बढ़ोत्तरी होगी। अगर कांग्रेस और भाजपा के मतप्रतिशत में 5 फीसदी का अंतर रहता है तो विजयी पार्टी की सीटों का ग्राफ और उपर जा सकता है। बहुजन समाज पार्टी इस बार अपनी मौजूदा सीटों को बरकरार रखने की हालत में नहीं है, मेरे हिसाब से उसे 2 से 3 सीटों का नुकसान होना चाहिए।
राहुल सिंह शेखावत