Saturday, December 16, 2017

राहुल गांधी के सामने कांग्रेस को बुरे दौर से उबारने की चुनौती

राहुल सिंह शेखावात

आखिरकार राहुल गांधी 132 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विधिवत रूप से राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या मोदी मैजिक में भगवा हो चुके हिंदुस्तान में वो अपनी पार्टी का वजूद बचाने में सफल हो पाएंगे।
जहां एक ओर राहुल के सामने हार दर हार से मायूस कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने की बडी चुनौती है।  वहीं दूसरी ओर नेहरू गांधी खानदान के इस छठे वारिश को, नई सोच के साथ भारतीय जनमानस में जगह बना देश का सर्वमान्य नेता बनने के लिए जूझना होगा।
और अगर राहुल गांधी अपने नेतृत्व में हार का सिलसिला नहीं तोड पाए तो  खुद उनके और पार्टी दोनों के सामने इतिहास बनने की आंशका बनी रहेगी।  
 पं मोती लाल नेहरू, पं जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीवगांधी, सोनिया गांधी के बाद, अब राहुल गांधी ने 132 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व संभाल लिया है।  
जिसके बाद कांग्रेस मुख्यालय समेत देश भर में पार्टी कार्यकर्ताओं का जश्न में डूबना लाजमी है। लेकिन राहुल बाबा ने उस वक्त कांग्रेस की बागडोर संभाली है, जबकि हिंदुस्तान का सियासी नक्शा पूरी तरह से भगवा रंग में  रंगने को तैयार है।   
कर्नाटक और पंजाब समेत कुल जमा 6 राज्यों को छोडकर बाकी सभी राज्यों में बीजेपी या उसके गठंबधन की सरकारें हैं। कांग्रेस के  सामने संकट ये है कि समूची हिंदी बेल्ट से उसका सफाया हो चुका है।
2019 के महारण की बिसात नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मैजिक जोडी ने अभी से इस कदर बिछा दी है कि  गुजरात के हालिया चुनाव प्रचार में कांग्रेस को देश का बताना पडा कि राहुल गांधी शिवभक्त और जनेउधारी हिंदू हैं।  इसको यूं भी कह सकते हैं कि अब सिर्फ नेहरू गांधी की विरासत के आधार पर अब चुनाव नहीं जीता जा सकता है।   जिसका राहुल गांधी को बखूबी इल्म है और शायद इसलिए उन्होंने अध्यक्ष पद संभालने के बाद बिना मोदी शाह का लिए कहा कि वो देश में आग लगा रहे हैं।  लेकिन कांग्रेसियों को उसे बुझाने का काम करना है।
 कहने की जरूरत नहीं है कि डा मनमोहन सिंह के रूप में यूपीए सरकार का लगातार दस साल नेतृत्व संभालने के बाद कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में 44 सीटों पर सिमटने के बाद एक एक कर राज्यों में चुनाव हारती गई। और अब कांग्रेस मोदी राज में बंजर हो रही अपनी सियासी जमीन को राहुल गांधी के नेतृत्व में 2019 में उपजाउ बनाने का सपना देख रही है। सवाल ये उठता है कि क्या ये सब इतना आसान होगा।
एक बाद एक करारी हार के बाद कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई और अगर गुजरात हिमाचल में हार मिलती है तो फिर कहां से उत्साह पैदा करेंगे?
मोदी के मोहपाश में कैद युवाओं को उससे बाहर लाकर कांग्रेस से जोडने का राहुल गांधी के पास नुस्खा क्या होगा!
अतीत इस बात का गवाह है जिन राज्यों में भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसकी फिर उपर नहीं उठ पाई और अब बीजेपी वहां पांव पसारने लगी है उससे निपटने का राहुल के पास क्या ब्लूप्रिंट है?
जिस तरह से उन्होंने यूपी में अखिलेश यादव से समझौता किया क्या उसी तर्ज पर महाराष्ट्र में शरद पंवार समेत अन्य लोगों से भविष्य में हाथ मिलाएंगे?
राहुल गांधी के बनने के बाद क्या प्रियंका बाड्रा को कोई उपयोग करेंगे?भाजपा में हाशिए पर चल अपने चचेरे भाई वरूण गांधी पर डोरे डालेंगे!
राहुल बाबा की टीम में पुराने,अनुभवी और खास तौर पर सोनिया के वफादार लोगों की कोई भूमिका होगी!
क्या फकत राहुल गांधी के मंदिर दर्शन भर से कांग्रेस मोदी शाह के हिंदू एजेंडा का सामना कर पाएंगे !
और वोटरों के दिमाग पर छाए मोदी के नशे को उतारकर भारतीय जनमानस के अंर्तमन में घुसने का कोई तरीका ढूंढा है!
और भी कई सवाल हो सकते हैं लेकिन कांग्रेसियों के लिए तो राहुल गांधी की ताजपोशी जश्न मना भविष्य की उम्मीद बढाने के लिए काफी है।लेकिन अब भी भाजपा में ऐसे नेता हैं जो कि राहुल गांधी को लेकर तंज कस चुटकी लेने  में पीछे नहीं है।
बहरहाल,  मोतीलाल से लेकर सोनिया तक नेहरू गांधी परिवार ने करीब 43 साल तक कांग्रेस का नेतृत्व संभाला। अब राहुल बाबा की बारी है वो भी तब जबकि कांग्रेस अपने सबसे बडे संकट के दौर से गुजर रही है।
लेकिन जिस तरह से उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ गुजरात चुनाव में चुनाव प्रचार किया और मोदी शाह ने उन्हें टारगेट किया, उसमे कहीं ना कहीं राहुलइफेक्ट तो साफ तौर पर झलकाता है।
अब ये भविष्य तय करेगा कि क्या राहुल गांधी मोदी राज में अपनी पार्टी का वजूद बचाकर एक नया इतिहास रचने में सफल हो पाएंगे या नहीं।